कुछ इस तरह से जमाने ने मिटाया है |
ढूँढता फिरता मुझको मेरा ही साया है |
कभी हँसे हैं लोग कभी तंज भी कसे हैं |
हमने बारहा जमाने पे तरस खाया है |
खुद में होते तो फिक्र अपनी भी करते |
वक्त ने मुझको मेरे पास नहीं पाया है |
तुम आखिर क्यों इसका हिसाब करो |
मैंने भला क्या खोया और क्या पाया है |
न मानो तो किताबें खोल कर पढ़ लो |
अपने खुदा को तुम्ही ने तो बनाया है |