कुछ लोग सियासत करते हैं कुछ लोग बगावत करते हैं |
कुछ ऐसे भी हैं लोग यहाँ पर जो सिर्फ शिकायत करते हैं |
रोटी की तरह इन्साफ भी अब बहुतों की पहुँच से बाहर है |
कुव्वत वाले लोग ही केवल कचहरी अदालत करते हैं |
चुपचाप रहो चुपचाप सहो जो भी हुक्म हो आकाओं का |
काँधे से हट जाते हैं सर जो उठने की हिमाकत करते हैं |
वही लुटेरे बदल के चेहरे फिर फिर आकर जम जाते हैं |
बिना वजह हर पाँच साल में हम बड़ी कवायद करते हैं |
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