Friday, July 20, 2012

उसको रंजिश अभी शायद मुझसे बाकी है

जब भी मिलता है बड़े तपाक से मिलता है

शिकायतें शर्तें बहाने शर्म और मजबूरियाँ

हमसे वो हमेशा भीड़ के साथ मिलता है

काँटो के सिवा कुछ नहीं देने को जिन्हें

अक्सर उनका चेहरा गुलाब से मिलता है

दूर रहकर बड़ी चोट करनी मुश्किल है

उससे होशियार जो आके गले मिलता है

कटोरे मे कुछ नहीं तिजोरी मे और और

न जाने यहाँ किस हिसाब से मिलता है

Thursday, July 5, 2012

एक सिर्फ हमीं में जरूर कुछ बुराई है

और तो सब से उनकी शनासाई है

हमें क्या पड़ी जो कहते फिरें सबसे

कैसे कैसों की उनके यहाँ रसाई है

न वो जमाना रहा न रिवाजें लेकिन

मुहब्बत में आज भी बड़ी रुसवाई है

बड़े अंदाज से चलते हुए आये थे वो

पूछते थे कि आग किसने लगाईं है