Friday, August 24, 2012

हमारी मुश्किलों से उन्हें सरोकार नहीं

जो दिखता है वो उनका कारोबार नहीं

जिन्हें हमने अपना रहनुमा बना दिया

चालाक तो वे हैं लेकिन होशियार नहीं

अपने फायदे तक तो सरपरस्त बने रहे

उसके बाद वो फिर किसी के यार नहीं

बस अपना ही घर भर के खुश बैठ रहे

कुँए से बाहर मेढकों का संसार नहीं

Monday, August 20, 2012

दैरो हरम और बाज़ार में भला क्या फर्क है

कुछ दिया जाता रहा कुछ लिया जाता रहा

हिन्दू औ मुसलमां बनके इंसान नहीं रहा

तोड़ी मस्जिद और कभी मंदिर जलाता रहा

गुजरते वक्त के साथ खिलौने बदलते रहे

आदमी ताउम्र केवल दिल को बहलाता रहा

Friday, August 17, 2012

निगाहों को और ऊँचे लगाया जाए

आसमान को ऊपर से हटाया जाए

हैं नहीं कहीं पर फसाद की जड़ हैं

जमीन से लकीरों को मिटाया जाए

बदलते वक्त में नई राहें फोड़नी हैं

चलो अब पत्थरों से टकराया जाए

चिरागों की आंधियों से ठन गई है

फिर किसी सूरज को उगाया जाए

यूँही बेकार न बहता रहे पसीना

थोड़ा लहू इस वास्ते बहाया जाए


Thursday, August 9, 2012

रास्ते यहाँ सबको खूब भरमाते रहे

खुद तो पड़े रहे दुनिया चलाते रहे

मंजिल तक कौन यहाँ पहुँच पाया

लोग राह पर खड़े पता बताते रहे

सबको सुधारने का ठेका ले लिया

वो इस बहाने से वहाँ आते जाते रहे

हमें भी कभी चैन से सोने न दिया

आते जाते दरवाजा खटखटाते रहे

Monday, August 6, 2012

रोती चीखती सर पटक कर चिल्लाती रही

इंसानों की बस्ती से इन्सानियल जाती रही

तमाम लोग खुद को ज़िंदा समझते रहे यहाँ

मेरे देखे उनको सांस भर आती जाती रही

इस कदर बेइज्जती से सामना करना पड़ा

जिंदगी यहाँ ताउम्र अपना मुंह छुपाती रही

फूल इस अंजुमन में अधखिले ही रह गए

कहने को तो बहार भी आती रही जाती रही