भगवान मीर,
चचा ग़ालिब,
मियाँ दाग,
अंकल फ़िराक,
दादा फ़ैज़,
मस्त जिगर,
भइया मजाज़
..और भी तमाम हैं जो जिम्मेदार हैं कुछ अच्छा बन पड़ा हो तो !
Thursday, March 10, 2011
मस्जिदों में कहाँ मस्जूद ख़ुद तक आ ख़ुदा हो जा और तो सब हक़ीर ठहरा पाना हो तो हक़ को पा फ़ित्नागर ख़ामोशी तेरी खुदाया लब कुशा हो जा असर लफ़्ज़ों मे पैदा कर बेबसों की सदा हो जा आवारगी फ़ितरत जो हो गुलशन मे सबा हो जा
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