Thursday, March 10, 2011

मस्जिदों में कहाँ मस्जूद
ख़ुद तक आ ख़ुदा हो जा
और तो सब हक़ीर ठहरा
पाना हो तो हक़ को पा
फ़ित्नागर ख़ामोशी तेरी
खुदाया लब कुशा हो जा
असर लफ़्ज़ों मे पैदा कर
बेबसों की सदा हो जा
आवारगी फ़ितरत जो हो
गुलशन मे सबा हो जा

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