Monday, October 17, 2011

गर्दन झुकाई नजरें उठाई ज़रा मुस्करा दिया 
बिना तलवार उसने कितनों को गिरा दिया 
अक्सर तो ज़िंदगी में दोपहर की सी धूप थी  
जुल्फों की घनी छाँव ने सबको आसरा दिया 
छोटा बड़ा अच्छा बुरा नाम क्या बदनाम क्या 
वक्त के साथ जमाने ने सबको बिसरा दिया 
दुनिया में अबतक लड़के तो जीता नहीं कोई 
मुहब्बत करने वालों ने परचम लहरा दिया 
या तो लोग अपने ही दुश्मन हैं या बेवकूफ 
हमने मसीहाओं को ही कातिल ठहरा दिया 
किस खेत की मूली हो तुम आखिर मिसिर 
रोटी की फिकिर ने सबको यहाँ घबरा दिया 

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