Friday, November 11, 2011

कुछ इस तरह से जमाने ने मिटाया है 
ढूँढता फिरता मुझको मेरा ही साया है
कभी हँसे हैं लोग कभी तंज भी कसे हैं 
हमने बारहा जमाने पे तरस खाया है
खुद में होते तो फिक्र अपनी भी करते 
वक्त ने मुझको मेरे पास नहीं पाया है 
तुम आखिर क्यों इसका हिसाब करो 
मैंने भला क्या खोया और क्या पाया है 
न मानो तो किताबें खोल कर पढ़ लो 
अपने खुदा को तुम्ही ने तो बनाया है 

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