भूख के अहसास को इंकलाबियों को कहने दो
गज़ल को माशूक की मरमरी बाहों में रहने दो
हर एक मंजिल को सूए दार नहीं होना चाहिए
कुछ को तो दिलबरे नादाँ की राहों में रहने दो
जी नहीं सकते सिर्फ रोटी से कहा था ईसा ने
कुछ तो खुशबू सुखन की गुलाबों में रहने दो
ज्यादातर तो गमे रोजगार में बह जाता ही है
कुछ रंगे लहू कमसिन के आरिजों में रहने दो
मुफलिसों की अंजुमन बेवा के माथे की शिकन
मसाइलों को सियासी गलियारों में रहने दो
हुस्नो इश्क न डूब जायें कहीं नारों के शोर में
इस हसीन नज़्म को पैमानों बहारों में रहने दो
गज़ल को माशूक की मरमरी बाहों में रहने दो
हर एक मंजिल को सूए दार नहीं होना चाहिए
कुछ को तो दिलबरे नादाँ की राहों में रहने दो
जी नहीं सकते सिर्फ रोटी से कहा था ईसा ने
कुछ तो खुशबू सुखन की गुलाबों में रहने दो
ज्यादातर तो गमे रोजगार में बह जाता ही है
कुछ रंगे लहू कमसिन के आरिजों में रहने दो
मुफलिसों की अंजुमन बेवा के माथे की शिकन
मसाइलों को सियासी गलियारों में रहने दो
हुस्नो इश्क न डूब जायें कहीं नारों के शोर में
इस हसीन नज़्म को पैमानों बहारों में रहने दो
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