Friday, August 17, 2012

निगाहों को और ऊँचे लगाया जाए

आसमान को ऊपर से हटाया जाए

हैं नहीं कहीं पर फसाद की जड़ हैं

जमीन से लकीरों को मिटाया जाए

बदलते वक्त में नई राहें फोड़नी हैं

चलो अब पत्थरों से टकराया जाए

चिरागों की आंधियों से ठन गई है

फिर किसी सूरज को उगाया जाए

यूँही बेकार न बहता रहे पसीना

थोड़ा लहू इस वास्ते बहाया जाए


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