निगाहों को और ऊँचे लगाया जाए
आसमान को ऊपर से हटाया जाए
हैं नहीं कहीं पर फसाद की जड़ हैं
जमीन से लकीरों को मिटाया जाए
बदलते वक्त में नई राहें फोड़नी हैं
चलो अब पत्थरों से टकराया जाए
चिरागों की आंधियों से ठन गई है
फिर किसी सूरज को उगाया जाए
यूँही बेकार न बहता रहे पसीना
थोड़ा लहू इस वास्ते बहाया जाए
आसमान को ऊपर से हटाया जाए
हैं नहीं कहीं पर फसाद की जड़ हैं
जमीन से लकीरों को मिटाया जाए
बदलते वक्त में नई राहें फोड़नी हैं
चलो अब पत्थरों से टकराया जाए
चिरागों की आंधियों से ठन गई है
फिर किसी सूरज को उगाया जाए
यूँही बेकार न बहता रहे पसीना
थोड़ा लहू इस वास्ते बहाया जाए
No comments:
Post a Comment