| किससे मांगिये कुछ भी |
| जहाँ मे कौन अमीर है |
| कुछ तो मांग है सबकी |
| हर एक यहाँ फ़कीर है |
| इश्के हकीकी के सिवा |
| दुनिया मे सब हकीर है |
| देखा नहीं उसे किसी ने |
| केवल वही बेनजीर है |
| जिसके दम पे सब नूर है |
| ये उसकी ही तस्वीर है |
भगवान मीर, चचा ग़ालिब, मियाँ दाग, अंकल फ़िराक, दादा फ़ैज़, मस्त जिगर, भइया मजाज़ ..और भी तमाम हैं जो जिम्मेदार हैं कुछ अच्छा बन पड़ा हो तो !
Thursday, July 28, 2011
Tuesday, July 26, 2011
| रहजनों की अगुआई में हैं काफिले |
| दुनिया में आज कोई रहबर नहीं है |
| हुकूमत करने वाले थोड़े से लोग हैं |
| बरबादी का जिम्मा सब पर नहीं है |
| उनके हक में है बीमार अच्छा न हो |
| ऐसा नहीं कि कोई चारागर नहीं है |
| हर बात में सबसे ऊपर कौन है यहाँ |
| आदमी आदमी से बढ़कर नहीं है |
| भीड़ के धोके में मत रहना मिसिर |
| कोई भी यहाँ तेरा हमसफ़र नहीं है |
| कत्अः |
| बचे होते तेरी निगाह से तो कहते |
| इससे तेजतर कोई नश्तर नहीं है |
| हमने भी करके देखा मीर साहब |
| नशा होशियारी से बेहतर नहीं है |
| उसकी कोई शक्ल है नहीं फ़िर भी |
| कोई शक्ल उससे बेहतर नहीं है |
Monday, July 25, 2011
| उनकी बात ही सुना कुछ और है |
| हकीकत मैने जाना कुछ और है |
| तेरी साफगोई का भरोसा कर लूँ |
| नज़र कहती मगर कुछ और है |
| भली लगती है बात ज़ाहिद की |
| मजमूने बयाँ मगर कुछ और है |
| इंसान खुद को समझते हैं जरूर |
| हमारी हरकतें मगर कुछ और हैं |
| ईमानदारी अच्छी बात है लेकिन |
| जीने का तरीका तो कुछ और है |
| दीखता तो हम जैसा ही है मगर |
| मिसिर आदमी ही कुछ और है |
Saturday, July 23, 2011
| टिकी हो जिनकी रोज़ी रोटी मसलों पर |
| मसाइल रोज़ी रोटी के वे सुलझायें क्यों |
| हमदर्दी के सिवा कुछ कर सके है कौन |
| किसी को जख्म अपने दिखलायें क्यों |
| जंजीरों को जेवर समझ के खुश हैं लोग |
| हकीकत मुश्किल हो तो समझाएं क्यों |
| इनसे बेहतर होगा इनका बनाने वाला |
| इन सूरतों से फ़िर दिल को बहलायें क्यों |
| देखा तो नहीं किसी को लौट कर आते |
| ये तय हो तो फ़िर मौत से घबराएं क्यों |
| ठीक रस्ते पर ये दुनिया चल रही हो |
| तो फ़िर नसीहतें मिसिर फरमाएं क्यों |
Friday, July 22, 2011
Thursday, July 21, 2011
Monday, July 18, 2011
Wednesday, July 6, 2011
| शिकायतों का दौर खत्म हो तो कुछ बात करें |
| तोहमतों पे जोर खत्म हो तो कुछ बात करें |
| मसले नाजुक हैं ज़रा गौर से सुनने होंगे |
| गोलियों का शोर खत्म हो तो कुछ बात करें |
| गड़े मुर्दे उखाड़ने से तो कुछ नहीं हासिल |
| लाशें बिछाना खत्म हो तो कुछ बात करें |
| झगड़ा हमारा है हमीं से सुलझेगा बेहतर |
| दखल गैर का खत्म हो तो कुछ बात करें |
| इंसानियत को तरक्की और अमन चाहिए |
| बमों का खौफ़ खत्म हो तो कुछ बात करें |
| खुद को डसने लगें हैं आस्तीनों के सांप |
| अब उनके ठौर खत्म हों तो कुछ बात करें |
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