कभी किसी की ज़िंदगी में ऐसी रात न हो |
वो यूँ चले जा रहे हैं जैसे कोई बात न हो |
मर जायेंगे अगर बोझ है ज़िंदगी लेकिन |
फ़िर क्या करेंगे जो ग़मों से निजात न हो |
अब फ़िर से बनाना मुझको तो इस तरह |
आँख में आंसू न हो सीने में जज्बात न हो |
क्यों खुश बैठ रहें अगर देनेवाला तू ही है |
जब तक हमारे कदमो में कायनात न हो |
लेकिन इन्ही लोगों का तो ये जिम्मा था |
ये देखना कि लोगों पे जोर ज़ुल्मात न हो |
बावजूद पहरे के कारवाँ लुट गया कैसे |
देखो ये कहीं रहबर की करामात न हो |
भगवान मीर, चचा ग़ालिब, मियाँ दाग, अंकल फ़िराक, दादा फ़ैज़, मस्त जिगर, भइया मजाज़ ..और भी तमाम हैं जो जिम्मेदार हैं कुछ अच्छा बन पड़ा हो तो !
Thursday, August 25, 2011
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बहुत ही सुन्दर रचना .....
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