एक सिर्फ हमीं में जरूर कुछ बुराई है
और तो सब से उनकी शनासाई है
हमें क्या पड़ी जो कहते फिरें सबसे
कैसे कैसों की उनके यहाँ रसाई है
न वो जमाना रहा न रिवाजें लेकिन
मुहब्बत में आज भी बड़ी रुसवाई है
बड़े अंदाज से चलते हुए आये थे वो
पूछते थे कि आग किसने लगाईं है
और तो सब से उनकी शनासाई है
हमें क्या पड़ी जो कहते फिरें सबसे
कैसे कैसों की उनके यहाँ रसाई है
न वो जमाना रहा न रिवाजें लेकिन
मुहब्बत में आज भी बड़ी रुसवाई है
बड़े अंदाज से चलते हुए आये थे वो
पूछते थे कि आग किसने लगाईं है
वाह....
ReplyDeleteलाजवाब गज़ल....
आपकी लेखनी की कायल हो गयी हूँ...
सादर
अनु
shukriya
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