Friday, February 19, 2010

करीब सन २००० के आसपास की लिखी हुई

दर्द बढता है तो
मुस्कराते क्यों हो
मुझे देखकर नज़रें
चुराते क्यों हो
मैं गुनहगार नहीं
फ़िर सताते क्यों हो
क्या मिलता है तुम्हे
मुझे रुलाते क्यों हो
सोचता हूँ इतना
याद आते क्यों हो
युँही कम गम नहीं
और बढाते क्यों हो
प्यार है गुनाह नहीं
इसको छुपाते क्यों हों



(ये मेरे दूसरे ब्लॉग तत्वमसि पर भी है)

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