Friday, March 5, 2010

ख़ाक हो रहेगा दिल
उसकी ज़िद यही है
कुछ भी कहो तुम
सही बात नहीं है
कहेंगे पता है मगर
ये नई बात नहीं है
रोते कटी अपनी
इसका रोना नहीं है
कहाँ जाते हो उधर
मेरा वो घर नहीं है
सुनो दिल की ज़रा
इसको सुकून नहीं है
जहाँ रखो कदम
दुनिया मेरी वहीं है
क्या दूँ कुछ भी तो
यहाँ मेरा नहीं है
अपने तो कहेंगे ही
मिसिर बुरा नहीं है

1 comment:

  1. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

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