Tuesday, August 30, 2011

निपटेंगे दुश्मनों से खुद किसी तरह 
दोस्तों से खुदा मेरे बचाना हमें तुम 
दिल अगर हो भी तो शीशे का न हो
अबके इस तरह से बनाना हमें तुम 
आंधियों एक चिराग हूँ बस आखिरी  
खुद अपने हाथों से जलाना हमें तुम 
खबर करेंगे जब जख्म पुराने भरेंगे 
दोस्तों आके फ़िर से सताना हमें तुम

Thursday, August 25, 2011

कभी किसी की ज़िंदगी में ऐसी रात न हो
वो यूँ चले जा रहे हैं जैसे कोई बात न हो
मर जायेंगे अगर बोझ है ज़िंदगी लेकिन 
फ़िर क्या करेंगे जो ग़मों से निजात न हो 
अब फ़िर से बनाना मुझको तो इस तरह 
आँख में आंसू न हो सीने में जज्बात न हो 
क्यों खुश बैठ रहें अगर देनेवाला तू ही है 
जब तक हमारे कदमो में कायनात न हो 
लेकिन इन्ही लोगों का तो ये जिम्मा था  
ये देखना कि लोगों पे जोर ज़ुल्मात न हो 
बावजूद पहरे के कारवाँ लुट गया कैसे
देखो ये कहीं रहबर की करामात न हो

Monday, August 22, 2011

यूँहीं चले आये वो रस्म निभाने के लिए 
लकडियाँ काफी थी हमें जलाने के लिए
कुछ इस तरह सुनते रहे वो हमारी अर्ज
जैसे कोई लोरी गाता हो सुलाने के लिए
क्या जानिये कैसे रंग गया पंजा उनका
मेंहदी तो मिल पाई नहीं रचाने के लिए
ज़ाहिद के समझाने से तय हो गया अब 
यही एक चीज है पीने पिलाने के लिए

Tuesday, August 16, 2011

न बाँधो ज़ोर से मुट्ठी ज़िन्दगी रेत है फ़िसल जायेगी

कब्र की ओर नहीं तो बता ज़िन्दगी किधर जायेगी

जैसे ओस की बूँद है कांपती हुई घास की नोंक पर

ये ज़िंदगी बस एक हवा के झोंके से बिखर जायेगी

हारने को कुछ नहीं और जीतने को दुनिया पड़ी है

फिर नहीं कोई और बाज़ी अब इससे बेहतर आएगी

ज़िंदगी दरिया की मौज औ तिनके सी हस्ती अपनी

चाहें न चाहें हम ये तो ले ही जायेगी जिधर जायेगी

Wednesday, August 10, 2011

सोमरस कहते थे देवता जिसको 
आगे चलके वही शराब हो गई
पाक किताबों में ज़िक्र है इसका
हमने पी ली तो खराब हो गई 
खुशी हो या गम मसले बहुत हैं 
ये हर सवाल का जवाब हो गई
और ही ढंग से पिलाई साकी ने 
मैकदे में भीड़ बेहिसाब हो गई 

Tuesday, August 2, 2011

रहजनों की अगुआई में चल रहे हैं काफिले 
याँ किसी को आजकल रहबरी आती नहीं
उनके हक में है बीमार अच्छा न होने पाए
ऐसा नहीं कि उनको चारागरी आती नहीं
नाज़ो अंदाज़ तो अब भी खूब है दुनिया में 
लेकिन हर किसी को दिलबरी आती नहीं
हर एक बात पर संजीदा हो जाते हैं लोग 
समझ में किसी की मसखरी आती नहीं 
वही कहता है जो ग़ालिबो मीर कह चुके 
कहते हैं मिसिर को शायरी आती नहीं