निपटेंगे दुश्मनों से खुद किसी तरह |
दोस्तों से खुदा मेरे बचाना हमें तुम |
दिल अगर हो भी तो शीशे का न हो |
अबके इस तरह से बनाना हमें तुम |
आंधियों एक चिराग हूँ बस आखिरी |
खुद अपने हाथों से जलाना हमें तुम |
खबर करेंगे जब जख्म पुराने भरेंगे |
दोस्तों आके फ़िर से सताना हमें तुम |
भगवान मीर, चचा ग़ालिब, मियाँ दाग, अंकल फ़िराक, दादा फ़ैज़, मस्त जिगर, भइया मजाज़ ..और भी तमाम हैं जो जिम्मेदार हैं कुछ अच्छा बन पड़ा हो तो !
Tuesday, August 30, 2011
Thursday, August 25, 2011
कभी किसी की ज़िंदगी में ऐसी रात न हो |
वो यूँ चले जा रहे हैं जैसे कोई बात न हो |
मर जायेंगे अगर बोझ है ज़िंदगी लेकिन |
फ़िर क्या करेंगे जो ग़मों से निजात न हो |
अब फ़िर से बनाना मुझको तो इस तरह |
आँख में आंसू न हो सीने में जज्बात न हो |
क्यों खुश बैठ रहें अगर देनेवाला तू ही है |
जब तक हमारे कदमो में कायनात न हो |
लेकिन इन्ही लोगों का तो ये जिम्मा था |
ये देखना कि लोगों पे जोर ज़ुल्मात न हो |
बावजूद पहरे के कारवाँ लुट गया कैसे |
देखो ये कहीं रहबर की करामात न हो |
Monday, August 22, 2011
Tuesday, August 16, 2011
न बाँधो ज़ोर से मुट्ठी ज़िन्दगी रेत है फ़िसल जायेगी
कब्र की ओर नहीं तो बता ज़िन्दगी किधर जायेगी
जैसे ओस की बूँद है कांपती हुई घास की नोंक पर
ये ज़िंदगी बस एक हवा के झोंके से बिखर जायेगी
हारने को कुछ नहीं और जीतने को दुनिया पड़ी है
फिर नहीं कोई और बाज़ी अब इससे बेहतर आएगी
ज़िंदगी दरिया की मौज औ तिनके सी हस्ती अपनी
चाहें न चाहें हम ये तो ले ही जायेगी जिधर जायेगी
कब्र की ओर नहीं तो बता ज़िन्दगी किधर जायेगी
जैसे ओस की बूँद है कांपती हुई घास की नोंक पर
ये ज़िंदगी बस एक हवा के झोंके से बिखर जायेगी
हारने को कुछ नहीं और जीतने को दुनिया पड़ी है
फिर नहीं कोई और बाज़ी अब इससे बेहतर आएगी
ज़िंदगी दरिया की मौज औ तिनके सी हस्ती अपनी
चाहें न चाहें हम ये तो ले ही जायेगी जिधर जायेगी
Wednesday, August 10, 2011
Tuesday, August 2, 2011
रहजनों की अगुआई में चल रहे हैं काफिले |
याँ किसी को आजकल रहबरी आती नहीं |
उनके हक में है बीमार अच्छा न होने पाए |
ऐसा नहीं कि उनको चारागरी आती नहीं |
नाज़ो अंदाज़ तो अब भी खूब है दुनिया में |
लेकिन हर किसी को दिलबरी आती नहीं |
हर एक बात पर संजीदा हो जाते हैं लोग |
समझ में किसी की मसखरी आती नहीं |
वही कहता है जो ग़ालिबो मीर कह चुके |
कहते हैं मिसिर को शायरी आती नहीं |
Subscribe to:
Posts (Atom)