Thursday, June 28, 2012

जमाने का एक ऐसा भी रंग देखा है
उसके हालात पे उसी को दंग देखा है
देखा है किताबों से लहू रिसते हुए
और अमन के लिए होते जंग देखा है
दैरो हरम में इबादत करते देखा है
उसी इंसान के हाथों में संग देखा है
भैंस का हिसाब लाठियों से अभी भी
इन्साफ का ऐसा ही ढंग देखा है

Wednesday, June 27, 2012

न देखा न बोले हमसे न मुस्कराए न सलाम किया

रात महफ़िल में उनने सब जाहिर सरेआम किया

जिस्मे बला नाजुक लब वो निगाहें वो अंदाजो अदा

सारे फितने उसके थे और मुफ्त हमें बदनाम किया

कैसे कैसे किस्मत वाले उन की बज्म में पहुंचे होंगे

हमने तो दरवाजे पर ही सारा वक्त तमाम किया

अक्सर हमने उठ उठ कर सोचा सबके साथ चलें

दिल ने ऐसी कोशिश को हरदम ही नाकाम किया

अमन चैन तो बाते हैं दुनिया को फितने ही भाते हैं

तैमूर ओ चंगेजों ने अपना यूँही तो नहीं नाम किया