किया जरूर था मना हमने |
तो उन्हें मान जाना था क्या |
सब उसके हाल पे छोड़ दिया |
हाल अपना बताना था क्या |
बहुत जिक्र करता था जाहिद |
उसका आना जाना था क्या |
क्यों आखिर ये हमारा होता |
किसी का ज़माना था क्या |
भगवान मीर, चचा ग़ालिब, मियाँ दाग, अंकल फ़िराक, दादा फ़ैज़, मस्त जिगर, भइया मजाज़ ..और भी तमाम हैं जो जिम्मेदार हैं कुछ अच्छा बन पड़ा हो तो !
Wednesday, September 12, 2012
Friday, September 7, 2012
Monday, September 3, 2012
कुछ लोग सियासत करते हैं कुछ लोग बगावत करते हैं |
कुछ ऐसे भी हैं लोग यहाँ पर जो सिर्फ शिकायत करते हैं |
रोटी की तरह इन्साफ भी अब बहुतों की पहुँच से बाहर है |
कुव्वत वाले लोग ही केवल कचहरी अदालत करते हैं |
चुपचाप रहो चुपचाप सहो जो भी हुक्म हो आकाओं का |
काँधे से हट जाते हैं सर जो उठने की हिमाकत करते हैं |
वही लुटेरे बदल के चेहरे फिर फिर आकर जम जाते हैं |
बिना वजह हर पाँच साल में हम बड़ी कवायद करते हैं |
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