Wednesday, September 12, 2012

किया जरूर था मना हमने 
तो उन्हें मान जाना था क्या  
सब उसके हाल पे छोड़ दिया 
हाल अपना बताना था क्या 
बहुत जिक्र करता था जाहिद 
उसका आना जाना था क्या 
क्यों आखिर ये हमारा होता 
किसी का ज़माना था क्या 

Friday, September 7, 2012

आदमी बस अब चंद घड़ियों का मेहमान है
मौजूद उसके खात्मे का सारा सामान है 
सिमटते जा रहें हैं दिल जज़्बात औ रिश्ते 
जितनी बड़ी बन्दूक वो उतना महान है 
रोटी की जगह गोदामों मे गोले बारूद हैं  
गज़ब मूरख है और समझता विद्वान है 

Monday, September 3, 2012

कुछ लोग सियासत करते हैं कुछ लोग बगावत करते हैं 
कुछ ऐसे भी हैं लोग यहाँ पर जो सिर्फ शिकायत करते हैं 
रोटी की तरह इन्साफ भी अब बहुतों की पहुँच से बाहर है 
कुव्वत वाले लोग ही केवल कचहरी अदालत करते हैं 
चुपचाप रहो चुपचाप सहो जो भी हुक्म हो आकाओं का 
काँधे से हट जाते हैं सर जो उठने की हिमाकत करते हैं 
वही लुटेरे बदल के चेहरे फिर फिर आकर जम जाते हैं 
बिना वजह हर पाँच साल में हम बड़ी कवायद करते हैं