भगवान मीर,
चचा ग़ालिब,
मियाँ दाग,
अंकल फ़िराक,
दादा फ़ैज़,
मस्त जिगर,
भइया मजाज़
..और भी तमाम हैं जो जिम्मेदार हैं कुछ अच्छा बन पड़ा हो तो !
Thursday, April 22, 2010
जो लड़खड़ाये नही वो भी कहाँ पहुंचे जो बैठ रहे तेरे दर पे कहाँ कहाँ पहुँचे वहाँ के ज़िक्र से भी परहेज़ उनको था उनको ढूँढते उस रात हम जहाँ पहुँचे नई राहों पे चल दिये थे दो चार दीवाने कहते हैं उनको मंजिलें वो जहाँ पहुँचे
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
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