साथ चलो तो वक्त सर पे उठा लेता है |
आगे चलने की मगर ये सजा देता है |
ये किताब भी किसी काम की न रही |
हर कोई अब इसे माथे से लगा लेता है |
पत्थरों का हो या हीरों का क्या फर्क |
चाहे जिसका भी हो बोझ डुबा देता है |
क्या क्या न सितम होते हैं ज़िंदगी में |
आदमी मरने पे उसे खुदा बना देता है |
सुनता तो नहीं कोई बातें मसीहा की |
उसके पीछे से मगर रस्म चला देता है |
लिख लिख के गज़ल लोग कहते हैं |
मिसिर बस रामकहानी सुना देता है |
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