उसको रंजिश अभी शायद मुझसे बाकी है
जब भी मिलता है बड़े तपाक से मिलता है
शिकायतें शर्तें बहाने शर्म और मजबूरियाँ
हमसे वो हमेशा भीड़ के साथ मिलता है
काँटो के सिवा कुछ नहीं देने को जिन्हें
अक्सर उनका चेहरा गुलाब से मिलता है
दूर रहकर बड़ी चोट करनी मुश्किल है
उससे होशियार जो आके गले मिलता है
कटोरे मे कुछ नहीं तिजोरी मे और और
न जाने यहाँ किस हिसाब से मिलता है
जब भी मिलता है बड़े तपाक से मिलता है
शिकायतें शर्तें बहाने शर्म और मजबूरियाँ
हमसे वो हमेशा भीड़ के साथ मिलता है
काँटो के सिवा कुछ नहीं देने को जिन्हें
अक्सर उनका चेहरा गुलाब से मिलता है
दूर रहकर बड़ी चोट करनी मुश्किल है
उससे होशियार जो आके गले मिलता है
कटोरे मे कुछ नहीं तिजोरी मे और और
न जाने यहाँ किस हिसाब से मिलता है
वाह वाह
ReplyDeleteshukriya
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति :
ReplyDeleteदूर रह कर भी चोट कर जाते है
गले मिल कर मल्हम लगाते हैं !
shukriya
Deleteबढ़िया गजल ||
ReplyDeleteshukriya
Deleteबेदर्दी यह दर्द नहीं सबको,ऐसे मिला जाता
ReplyDeleteप्यार करोगे तब जानोगे,कैसे है यह आता,,,,,,
बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
Shukriya
Deleteबढिया प्रस्तुति !!
ReplyDeleteShukriya!!
Deleteshukriya
ReplyDelete