रोती चीखती सर पटक कर चिल्लाती रही
इंसानों की बस्ती से इन्सानियल जाती रही
तमाम लोग खुद को ज़िंदा समझते रहे यहाँ
मेरे देखे उनको सांस भर आती जाती रही
इस कदर बेइज्जती से सामना करना पड़ा
जिंदगी यहाँ ताउम्र अपना मुंह छुपाती रही
फूल इस अंजुमन में अधखिले ही रह गए
कहने को तो बहार भी आती रही जाती रही
इंसानों की बस्ती से इन्सानियल जाती रही
तमाम लोग खुद को ज़िंदा समझते रहे यहाँ
मेरे देखे उनको सांस भर आती जाती रही
इस कदर बेइज्जती से सामना करना पड़ा
जिंदगी यहाँ ताउम्र अपना मुंह छुपाती रही
फूल इस अंजुमन में अधखिले ही रह गए
कहने को तो बहार भी आती रही जाती रही
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